काका' राजेश खन्ना...अब सिर्फ यादों में


 काका को मेरे तरफ से श्रधान्जली                    
                                                                               दिनेश 

'काका' राजेश खन्ना...अब सिर्फ यादों में

राजेश खन्ना
राजेश खन्ना एक अप्रैल से ही बीमार थे
भारतीय समयानुसार सुबह करीब दस बजे हल्की बारिश के बीच बांद्रा स्थित बंगले 'आशीर्वाद' से हिंदी फिल्म जगत के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की अंतिम यात्रा शुरु हुई.
राजेश खन्ना के पार्थिव शरीर को शीशे के ताबूत में सफेद फूलों से सजे एक खुले ट्रक में रखा गया ताकि उनके प्रशंसक उनके अंतिम दर्शन कर सकें.
जिस ट्रक में राजेश खन्ना को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया इस पर उनके दामाद अक्षय कुमार, उऩकी पत्नी डिम्पल और उनकी छोटी बेटी रिंकी खन्ना मौजूद थीं.
इस ट्रक पर राजेश खन्ना की बड़ी तस्वीर लगी हुई थी.
इस दौरान फिल्म जगत की तमाम हस्तियों के साथ भारी भीड़ भी ट्रक के पीछे चल रही थी. अक्षय-ट्विंकल के बेटे आरव ने राजेश खन्ना को मुखाग्नि दी.
रास्ते के दोनों तरफ काका को श्रद्धांजलि देने के लिए काफी तादाद में लोग मौजूद थे.रास्ते में उनके प्रशंसक उनकी तस्वीरें ले कर खड़े थे. कुछ रो रहे थे तो कुछ की आंखे नम थीं.

अंतिम दर्शन

इस अंतिम यात्रा के लिए सड़क पर एक तरफ का यातायात रोक दिया गया था. कई जगह भारी भीड़ होने के चलते रास्ता जाम जैसी स्थितियां भी आईं.
सबेरे सें ही उनके घर के सामने मीडियाकर्मियों और फिल्म जगत की हस्तियों का तांता लगा रहा.

सड़क के दोनों ओर राजेश खन्ना के प्रशंसक अंतिम दर्शन करने के लिए इक्ट्ठे थे.
इससे पहले, राजेश खन्ना ने बुधवार दोपहर मुंबई स्थि‌त अपने घर 'आशीर्वाद' में अंतिम सांस ली.
जिस समय राजेश खन्ना का निधन हुआ उस समय उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया, बेटी रिंकी व ट्विंकल खन्ना और दामाद अक्षय कुमार सहित पूरा परिवार उनके पास मौजूद था.
राजेश खन्ना को लोग प्यार से 'काका' कह कर पुकारते थे. ये राजेश खन्ना ही थे जिन्होंने 1960 और 1970 के दशक में परदे पर रोमांस को एक नई पहचान दी.
राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा में पहले सुपरस्टार का रुतबा हासिल हुआ.
लगभग 150 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके राजेश खन्ना कुछ दिन पहले ही अप्सरा आवार्ड में शामिल हुए थे उन्हें दिलीप कुमार, मनोज कुमार, सायरा बानो जैसी फिल्म जगत की दिग्गज हस्तियों में शामिल कर सम्मानित किया गया था.

राजेश खन्ना- जिसने सिनेमा के मायने सिखाए

मुझे सिनेमा से बेहद प्यार है, मैं ही क्यूँ भारत के किसी भी गली कोने में चले जाएँ- सिनेमा के दीवाने भरे पड़े हैं. यहाँ फिल्में केवल फिल्में नहीं बल्कि धर्म है, जूनुन है, ज़िंदगी जीने का एक तरीका है, एक सपना है.
सिनेमा की इस जादुई दुनिया से मेरा रिश्ता बचपन में सबसे पहले जुड़ा एक प्यारी सी फिल्म आनंद से और उसमें दो जादुई अभिनेताओं राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के ज़रिए. राजेश खन्ना का आनंद में अभिनय मेरे लिए फिल्मों से जुड़ने की पहली सीढ़ी बनी.
आज शायद इसलिए उनके जाने पर मन के एक कोने में सूनापन है. फिर चाहे हमने बरसों से भले ही उन्हें ठीक से याद न किया हो, उनको एक कोने में धकेल दिया हो.
फिल्मों से प्रेम संबंध
बचपन के हँसी ठिठोले के बीच फिल्में केवल देखकर भूल जाने की चीज थी मेरे लिए. फिर दूरदर्शन पर एक दिन ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म आनंद आई. देखकर रोंगटे खड़े हो गए...
आनंद को वो हँसमुख इंसान, नाम आनंद जिसे लिम्फोसरकोमा ऑफ इंटेस्टाइन था. हर वक़्त उसे बस मजाक सूझता, एक सख्त अक्कड़ युवा डॉक्टर ( अमिताभ बच्चन) को भी उसने अपना मुरीद बना लिया.
उसकी हरकतों से झल्लाकर डॉक्टर जब उससे पूछता है कि क्या पता भी है कि लिम्फोसरकोमा ऑफ इंटेस्टाइन क्या होता है तो आनंद बेपरवाह अंजाद में जवाब देता है, “वाह वाह क्या बात, क्या नाम है. ऐसा लगता है किसी वाइसरॉय का नाम है. बीमारी हो तो ऐसी हो.”
एक घंटे और सत्तावन मिनट की फिल्म गुजर गई और लगा ही नहीं कोई अभिनय कर रहा है. लगा कोई जिंदगी जीने के कला सिखाकर चला गया. फिल्म की खुमारी कुछ दिनों बाद उतरी तो समझ में आया कि ये सिनेमा का जादू था.
बस मेरा और फिल्मों का प्रेम संबंध उसी दिन से शुरु हो गया. अगर मैं कहूँ कि राजेश खन्ना मेरे सबसे पसंदीदा सितारे थे तो ये सही नहीं होगा. लेकिन वो तिलिस्मी दुनिया जिसे सिनेमा कहते हैं उससे रुबरु कराने का श्रेय उन्हीं को जाता है.
उपर आका, नीचे काका
दूरदर्शन पर शाम को उनकी फिल्में आई करती थी तो बच्चे, युवा, बूढ़े सब लाइन से बैठकर आँखें फाडें उनकी फिल्में देखते थे.
धुँधला सा ही सही पर मुझे याद है कि अराधना का वो खिलदंड अरुण जब मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू गाता था सब तालियाँ बजाते थे. अमर प्रेम का आनंद बाबू जब बोलता था कि पुष्पा आई हेट टीयर्स तो ये डायॉलग लोग बार बार दोहराते.
बड़े होने पर पूरी तरह ऐहसास हुआ कि आखिर राजेश खन्ना कितने बड़े सुपरस्टार थे. सुपरस्टार का उनका जलवा कभी देखा नहीं, बस सुना है.
हमारी पीढ़ी के लिए सुपरस्टार का मतलब शाहरुख खान या अमिताभ बच्चन हैं. लेकिन बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि सुपरस्टार क्या होता, या भारतीय संर्दभ में कोई शब्द होता है ये सबसे पहले राजेश खन्ना ने दिखाया.
फिल्म अभिनेत्री अरुण ईरानी ने टीवी पर एक बातचीत में बताया कि कैसे बड़ी संख्या में प्रोड्यूसर उनके पीछे पड़े रहते थे और राजेश खन्ना के लिए फैसला करना मुश्किल हो जाता कि वो किसकी फिल्म साइन करे. ..ऐसे में वो सबको बुलकर ड्रॉ करवाते और जिसके नाम की चिट्ठी निकलती उसकी फिल्म करते.
जैसे आज बिग बी है, किंग खान है वैसे ही काका था. कहा जाता था उपर आका, नीचे काका. उनका असल नाम जतिन था.
उनके सुपरस्टारडम के किस्से सुने हैं तो शोहरत की ऊंचाइयों से उतरते राजेश खन्ना के शराब, गुरूर और अकेलेपन में डूबने के किस्से भी सुने हैं.
सबमें खोट होते हैं, उनमें भी रहे होंगे. लेकिन राजेश खन्ना उस शख्स का नाम है जिसने एक पूरी पीढ़ी को, फिल्मों के जरिए ही सही, पर रोमांस करना सिखाया.
टेढ़ी से उनकी नजर, गर्दन का वो हिलाना, आधी बंद और आधी खुली उनकी इठलाती आँखें....हम सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं कि जवानी में पर्दे पर उनको देखकर लोगों पर क्या जादू चलता होगा.
जिंदगी कैसी है पहेली
राजेश खन्ना न तो मेरी पीढ़ी के थे, न मेरे लिए सबसे बेहतरीन एक्टर, न कभी उनका इंटरव्यू किया, न कभी उनसे मिली, पिछले 10-15 साल में उनकी कोई फिल्म भी नहीं देखी....पर उनके चले जाने की खबर से अचानक लगा मानो कुछ है जो खो दिया है.
पर्दे पर निभाए किरदार हकीकत नहीं होते, मनगंढ़त कहानियाँ होती हैं, अफसाने होते हैं.
फिल्मी पर्दे पर अपने किरदारों के माध्यम से ही सही पर राजेश खन्ना ने आनंद जैसी फिल्मों के जरिए मुझे सिनेमा से जुड़ाव की अनमोल भेंट दी.
आनंद के राजेश खन्ना ने एक जगह कहा था कि “बाबू मोशाई जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं.”
राजेश खन्ना की ज़िंदगी 70 साल से लंबी नहीं हो सकी पर बड़ी ज़रूर रहेगी. बड़ी स्क्रीन का बड़ा हीरो...सुपरस्टार राजेश खन्ना.



आखिर क्यों हुआ राजेश खन्ना का पतन?


राजेश खन्ना के चोटी पर पहुंचने का सफर जितना चमत्कारिक था, उतना ही आश्चर्यजनक उनका पतन था.
60 के दशक के उत्तरार्ध और 70 के दशक के पूर्वार्ध का सुपरस्टार अचानक अपनी चमक खोने लगा.
जिस सितारे ने लगातार 15 हिट फिल्में दीं, जिसकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोग लाइन लगाकर खड़े रहते थे, जिसकी कार पर युवा लड़कियों के लिपस्टिक के निशान हुआ करते थे और जो उसे खून से लिखी चिट्ठियां भेजा करती थी वो इंसान अचानक कामयाबी के शिखर से क्यों लुढ़कने लगा. इस पर बीबीसी ने उनके कई साथी कलाकारों और फिल्म विशेषज्ञों की राय जाननी चाही.

नहीं संभाल पाए स्टारडम


"दरअसल वो अपनी स्टारडम संभाल नहीं पाए. जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है उसे अपने आपको बदलते जाना चाहिए. स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब आपमें वो बात नहीं रही. और फिर उसी हिसाब से अगर वो फिल्मों का चुनाव करते तो शायद उनकी कामयाबी की पारी और लंबी चलती."
वहीदा रहमान, अभिनेत्री

राजेश खन्ना की शुरुआती फिल्मों से एक 'खामोशी' में उनके साथ काम कर चुकी चर्चित अभिनेत्री वहीदा रहमान कहती हैं, "देखिए जब कोई पहाड़ की चोटी पर पहुंचता है तो उसे एक ना एक दिन नीचे तो आना ही पड़ता है. ये बहुत स्वाभाविक सी बात है."
जब बीबीसी ने उनसे पूछा कि लेकिन राजेश खन्ना का इतनी तेजी से पतन स्वाभाविक तो नहीं था, उसकी भला क्या वजह थी, तो वहीदा बोलीं, "दरअसल वो अपनी स्टारडम संभाल नहीं पाए. जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है उसे अपने आपको बदलते रहना चाहिए. स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब आपमें वो बात नहीं रही. और फिर उसी हिसाब से अगर वो फिल्मों का चुनाव करते तो शायद उनकी कामयाबी की पारी और लंबी चलती. लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाए. वो बहुत ज्यादा अपनी कामयाबी के दिनों में ही खोए रहे."


ऋषिकेश मुखर्जी की सुपरहिट फिल्म 'नमक हराम' सहित राजेश खन्ना के साथ नौ फिल्में कर चुके अभिनेता रजा मुराद भी कुछ ऐसी ही राय रखते हैं.
रजा के मुताबिक, "राजेश खन्ना बेहद दिलदार आदमी थे. उनके घर पर देर रात तक महफिलें जमा करती थीं और इस वजह से वो अपनी फिल्मों के सेट पर देर से पहुंचने लगे. इस वजह से उनके निर्माता उनसे परेशान रहने लगे. फिर रात को देर देर तक जागने और अपनी अनुशासनहीन जीवन शैली की वजह से उनके खूबसूरत चेहरे पर भी फर्क पड़ने लगा. कभी टमाटर की तरह सुर्ख लाल रहने वाला उनका चेहरा निस्तेज सा लगने लगा. और इसके बाद उनकी नाकामयाबी का दौर शुरू हो गया."
रजा मुराद कहते हैं कि जब हाल ही में उन्होंने राजेश खन्ना को एक टीवी के विज्ञापन में देखा तो उन्हें बेहद दुख हुआ कि उनका ये बेहद खूबसूरत साथी अब कैसा कमजोर दिखने लगा है.

पुरानी कामयाबी में ही खोए रहे

फिल्म समीक्षक नम्रता जोशी राजेश खन्ना के पतन की वजह ये मानती हैं कि वो बदलते वक्त के साथ अपने आपको ढाल नहीं पाए.
नम्रता कहती हैं, "किसी भी स्टार की कामयाबी का एक दौर होता है. फिर वक्त बदलता है. राजेश खन्ना अपने पुराने दिनों में ही खोए रहते. 70 के दशक में अमिताभ बच्चन का आगाज हुआ. तो कामयाबी राजेश खन्ना के हाथ से सरकने लगी. वक्त बदल रहा था. लोग रोमांटिक फिल्मों से बोर होने लगे थे. अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन अवतार लोगों को भाने लगा था. ऐसे में लोग राजेश खन्ना के वही पुराने चिर परिचित हाव भाव देखकर उकताने लगे थे."
नम्रता के मुताबिक राजेश खन्ना एक कलाकार नहीं बल्कि एक स्टार थे. शायद ये भी एक वजह थी उनके कामयाबी के शिखर से नीचे गिरने की.

"वो अपनी फिल्मों के सेट पर देर से पहुंचने लगे. इस वजह से उनके निर्माता उनसे परेशान रहने लगे. फिर देर रात तक जागने और अपनी अनुशासनहीन जीवन शैली की वजह से उनके खूबसूरत चेहरे पर भी फर्क पड़ने लगा. कभी टमाटर की तरह सुर्ख लाल रहने वाला उनका चेहरा निस्तेज सा लगने लगा."
रजा मुराद, अभिनेता

नम्रता ने कहा कि जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में काम किया और फिर बाद में 'बागबान' जैसी फिल्मों में चरित्र रोल करने लगे वैसा 'काका' नहीं कर पाए.
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे की राय भी कुछ कुछ ऐसी ही है.
जयप्रकाश चौकसे कहते हैं, "राजेश खन्ना एक मैनरिज्म वाले कलाकार थे. सिर्फ मैनरिज्म के सहारे कोई कलाकार लंबे वक्त तक नहीं खिंच सकता. अमिताभ बच्चन की कामयाबी का सफर इसलिए बेहद लंबा रहा क्योंकि वो एक बेहतरीन अभिनेता भी हैं. इस वजह से उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें तमाम रोल मिल रहे हैं. राजेश खन्ना के साथ ये बात नहीं थी. वो सिर्फ अपनी अदाओं और लटके झटकों पर ही निर्भर रहे. लेकिन हां, ऋषिकेश मुखर्जी की 'आनंद' और' सफर', ये दो ऐसी फिल्में थीं, जिसमें राजेश खन्ना ने कमाल का अभिनय किया."
लेकिन ये तमाम लोग एक बात पर सहमत हैं. वो ये कि राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम भले ही ज्यादा लंबा नहीं चला लेकिन जिस कदर उस छोटे से दौर में लोगों ने उन्हें चाहा, उन्हें लेकर जो दीवानगी थी, वैसी शायद हिंदी फिल्मों के किसी अभिनेता को नसीब नहीं हुई.
राजेश खन्ना पर फिल्माए गए हिट गीत




जिंदगी कैसी है पहेली हाय (आनंद)
मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू (आराधना)
मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने (आनंद)
कहीं दूर जब दिन ढल जाए (आनंद)
जिंदगी प्यार का गीत है (सौतन)
अच्छा तो हम चलते हैं (आन मिलो सजना)
अगर तुम न होते (अगर तुम न होते)
चला जाता हूं (मेरे जीवन साथी)
चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम)
दीवाना लेक आया है (मेरे जीवन साथी)
दिल सच्चा और चेहरा झूठा (सच्चा झूठा) 
दीये जलते हैं (नमक हराम)
गोरे रंग पे ना इतना (रोटी)
हजार राहें मुड़ के देखी (थोड़ी सी बेवफाई) 
हमें तुमसे प्यार कितना (कुदरत)
जय जय शिव शंकर (आप की कसम)
करवटें बदलते रहे सारी रात हम (आप की कसम)
जीवन से भरी तेरी आंखें (सफर)
कभी बेकसी ने मारा (अलग अलग)
कोरा कागज था ये मन मेरा (आराधना)
कुछ तो लोग कहेंगे (अमर प्रेम)
मैं शायर बदनाम (नमक हराम)
मेरे दिल में आज क्या है (दाग)
मेरे दिल ने तड़प के (अनुरोध)
हम दोनों दो प्रेमी (अजनबी)
मेरे नैना सावन भादो (मेहबूबा)
मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया (सच्चा झूठा)
ओ मेरे दिल के चैन (मेरे जीवन साथी) 
प्यार दीवाना होता है (कटी पतंग)
रूप तेरा मस्ताना (आराधना)
शायद मेरी शादी का खयाल (सौतन) 
वो शाम कुछ अजीब थी (खामोशी)
यार हमारी बात सुनो (रोटी) 
यहां वहां सारे जहां में (आन मिलो सजना)
ये जो मोहब्बत है (कटी पतंग)
ये क्या हुआ (अमर प्रेम)
ये शाम मस्तानी (कटी पतंग)
जिंदगी का सफर (सफर)
जिंदगी के सफर में (आप की कसम)
राजेश खन्ना की पांच श्रेष्ठ फिल्म

राजेश खन्ना ने कई फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी की है। अपनी संवाद अदायगी, अदाओं और अभिनय के जरिये लोगों का दिल जीता। श्रेष्ठ पांच फिल्म चुनना वाकई मुश्किल काम है और यह बहस का विषय भी है।

आनंद (1971)
आनंद
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‘‘बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता।’’ जिंदादिली की नई परिभाषा आनंद फिल्म ने गढ़ी। राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा। एक ही फिल्म यह बताने के लिए काफी है कि वे कितने बेहतरीन अदाकार थे।

हृषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर (लिम्फोसर्कोमा ऑफ इंटेस्टाइन) पीड़ित किरदार को जिस ढंग से राजेश ने जिया, वह भावी पीढ़ी के कलाकारों के लिए उदाहरण बन गया।

इस फिल्म में अपनी जिंदगी के आखिरी पलों में मुंबई आने वाले आनंद सहगल की मुलाकात डाक्टर भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) से होती है। आनंद से मिलकर भास्कर जिंदगी के नए मायने सीखता है और आनंद की मौत के बाद अंत में कहने को मजबूर हो जाता है कि ‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं।’’

सुपरस्टार राजेश खन्ना के करियर की यह यकीनन सर्वश्रेष्ठ फिल्म है, जिसमें उनकी संवाद अदायगी, मर्मस्पर्शी अभिनय और बेहतरीन गीत संगीत ने इसे भारतीय सिनेमा की अनमोल धरोहर बना दिया। गुरू कुर्ते पहनने वाला आनंद समंदर के किनारे जब ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ गाता है तो दर्शकों को उसकी पीड़ा का अहसास होता है।

अगले ही पल वह एक अजनबी (जॉनी वाकर) के कंधे पर हाथ रखकर कहता है,‘‘ कैसे हो मुरारी लाल, पहचाना कि नहीं।’’ आनंद के किरदार के इतने रंगों को राजेश खन्ना ने जिस खूबी से जिया कि दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए।

आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है, लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते। जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए। जिंदगी जितनी जियो, दिल खोलकर जियो। हिन्दी सिनेमा का यह आनंद भले ही अब हमारे बीच नहीं हो, लेकिन उसका यह किरदार कभी नहीं मरेगा। आराधना (1969)
Aradhana
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राजेश खन्ना के करियर की पहली सुपरहिट फिल्म। इस फिल्म ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। रोमांस को राजेश खन्ना ने एक नए तरीके से सिल्वर स्क्रीन पर व्यक्त किया और युवा पीढ़ी उनकी दीवानी हो गई।

एअरफोर्स ऑफिसर अरुण वर्मा और सूरज के दोहरे किरदार उन्होंने इस तरह निभाए कि दर्शक दंग रह गए। आराधना एक कमर्शियल फिल्म है जिसमें भरपूर मनोरंजन है। रोमांस, खुशी, गम, हिट म्युजिक और राजेश खन्ना-शर्मिला टैगोर के दमदार अभिनय से इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार सफलता हासिल की।

मेरे सपनों की रानी का फिल्मांकन आज भी याद किया जाता है, जिसमें जीप पर बैठे राजेश खन्ना ट्रेन में बैठी शर्मिला के लिए गाना गाते हैं। राजेश के साथ कई फिल्म कर चुकी शर्मिला का कहना है कि आराधना में राजेश से बेहतर रोल और कोई नहीं कर सकता था।
नमक हराम (1973)
नमक हराम
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राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की एक और साथ की गई फिल्म। यह दो दोस्तों की कहानी है जिसमें एक अमीर है और एक गरीब। अमीर दोस्त की कंपनी को बचाने के लिए गरीब दोस्तों मजदूरों के बीच जाकर रहने लगता है ताकि वह उनकी एकता को तोड़ सके, लेकिन वहां जाकर उसे मालूम पड़ता है कि मजदूर सही हैं और उसका अमीर दोस्त गलत। वह दोस्त की बजाय मजदूरों का साथ देता है। 

राजेश खन्ना ने सोनू नामक गरीब दोस्त की भूमिका इतने प्रभावी ढंग से निभाई कि फिल्म देखने के बाद उनका अभिनय ही याद रहता है। ऋषिकेश मुखर्जी ने आनंद के बाद राजेश खन्ना के साथ ‘नमक हराम’ के रूप में एक और यादगार फिल्म दी। दीये जलते हैं फूल खिलते हैं, नदिया से दरिया दरिया से सागर, मैं शायर बदनाम जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं।

बावर्ची (1972)


Bawarchi
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रघु नामक बावर्ची के रोल में राजेश खन्ना ने ऐसी जान डाल दी थी कि वे हंसाते-हंसाते रुला देते हैं। उनके हास्य में करुणा थी। रघु परिवार के उन सदस्यों के बीच की दूरियों को पाटता है जो छोटे-छोटे कारणों से दूर हैं। वह बावर्ची बनकर घरों में नौकरी करता है और परिवार के सदस्यों को जोड़ने का काम करता है। राजेश खन्ना का अभिनय इतना सहज और सरल था कि लगता ही नहीं था कि वे अभिनय कर रहे हैं।

अमर प्रेम (1972)

Amar Prem
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पुष्पा और आनंद बाबू के निश्चल प्रेम को निर्देशक शक्ति सामंत ने ‘अमर प्रेम’ में बेहतरीन तरीके से दिखाया था। शादी से नाखुश, तनहा इंसान की तड़प को जो राजेश खन्ना ने अपने दमदार अभिनय से पेश किया। इस फिल्म की कहानी में दर्द था, वेदना थी। आमतौर पर दु:खों से भरी फिल्म देखना दर्शक पसंद नहीं करते हैं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म सुपरहिट रही।

इन फिल्मों के अलावा इत्तेफाक, आपकी कसम, सफर, सच्चा झूठा, रोटी, कटी पतंग, दाग जैसी कई यादगार फिल्में राजेश खन्ना ने दी हैं।


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