प्रणब मुखर्जी: राष्ट्रपति पद तक का सफर




प्रणब मुखर्जी की जीत पर जश्न का माहौल

रूपरेखा: भारत की राष्‍ट्रपति

श्री प्रणब मुखर्जी
श्री प्रणब मुखर्जी
पिता का नाम : स्‍वर्गीय श्री कामदा किन्‍कर मुखर्जी
मां का नाम: स्‍वर्गीय श्रीमती राजलक्ष्‍मी मुखर्जी
जन्‍म तिथि : 11 दिसम्‍बर, 1935
जन्‍म स्‍थान : मिराटी, किरनाहर, जिला : बिरभूम, पश्चिम बंगाल
वैवाहिक स्थिति : विवाहित
पत्‍नी का नाम : श्रीमती सुवरा मुखर्जी
बच्‍चे : दो पुत्र और एक पुत्री
शैक्षिक योग्‍यताएं : एम. ए. (इतिहास), एम. ए. (राजनीतिक विज्ञान), एलएल.बी., डी. लिट. (ऑनरिस कॉसा), विद्यासागर कॉलेज में शिक्षित
स्‍थायी पता : फ्लैट नं. 2-ए, पहला तल, 60/2/7, कवि भारती सारणी, लेक रोड, कोलकाता - 700 029 पश्चिम बंगाल, टेली. (033) 24648366
वर्तमान पता : 13, तालकटोरा रोड, नई दिल्‍ली - 110 001, टेली. (011) 23737623
व्‍यावसाय : राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, अध्‍यापक, पत्रकार, लेखक
परिवारिक पृष्ठभूमि: पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे, 10 से अधिक वर्षों के लिए जेल गए थे, 1920 से सभी कांग्रेस आंदोलनों में भाग लिया, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक सदस्य थे, और पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952-1964), अध्यक्ष, जिला कांग्रेस कमेटी, बीरभूम (पश्चिम बंगाल)
धारित पद :
  • राज्‍यसभा के लिए निर्वाचित (जुलाई 1969)
  • उप मंत्री, औद्योगिक विकास (जनवरी 1973- जनवरी 1974)
  • उप मंत्री, नौवहन और परिवहन (जनवरी 1974-अक्‍तूबर 1974)
  • केंद्रीय राज्‍य मंत्री, वित्त (अक्‍तूबर 1974-दिसम्‍बर 1975)
  • राज्‍यसभा के लिए पुन: निर्वाचित (दूसरी अवधि) (जुलाई 1975)
  • मंत्री, राजस्‍व और बैंकिंग (स्‍वतंत्र प्रभार) (दिसम्‍बर 1975-मार्च 1977)
  • उप नेता, कॉन्‍ग्रेस पार्टी, राज्‍य सभा (1978 -1980)
  • सदस्‍य, कांग्रेस कार्य समिति (आईएनसी) (27 जनवरी 1978-18 जनवरी 1986)
  • कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति, कोषाध्यक्ष, संसद में कांग्रेस (I) पार्टी (1978 – 1979)
  • सदस्य, केंद्रीय संसदीय बोर्ड, एआईसीसी (1978 – 1986)
  • केन्द्रीय मंत्री, वाणिज्य, और इस्पात और खान (जनवरी 1980- जनवरी 1982)
  • सदन के नेता, राज्य सभा (1980 -1985)
  • राज्‍यसभा के लिए पुन: निर्वाचित (तीसरी अवधि) (अगस्‍त 1981)
  • केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री, वाणिज्य और आपूर्ति मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ वित्त (जनवरी 1982-दिसम्‍बर 1984 और जनवरी-दिसम्‍बर 1984)
  • अध्‍यक्ष, संसद के राष्‍ट्रीय निर्वाचन के लिए एआईसीसी की प्रचार आयोजन समिति (1984-1991), (1996) और (1998)
  • अध्यक्ष, आर्थिक सलाहकार प्रकोष्ठ, एआईसीसी (1987 – 1989)
  • उपाध्यक्ष, योजना आयोग (जून 1991-मई 1996)
  • केन्द्रीय मंत्रिमंडल मंत्री, वाणिज्य (जनवरी 1993-फरवरी 1995)
  • राज्‍यसभा के लिए पुन: निर्वाचित (चौथी अवधि) (1993)
  • केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, विदेश (फरवरी 1995-मई 1996)
  • सदस्य, व्यापार सलाहकार समिति, राज्य सभा (1996 – 2003)
  • सदस्य, विशेषाधिकार समिति, राज्य सभा, सदस्य, नियम पर समिति, राज्यसभा (1996 -2004)
  • सदस्य, विदेश मंत्रालय के लिए सलाहकार समिति (1996 -1999)
  • अध्यक्ष, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों से संबंधित संसदीय स्थायी समिति, पर्यावरण और वन (1997)
  • राज्‍यसभा के लिए पुन: निर्वाचित (पांचवीं अवधि); पूर्व अध्यक्ष, केंद्रीय चुनाव समन्वय समिति, एआईसीसी (1999)
  • महासचिव, एआईसीसी; पूर्व सदस्य, कांग्रेस कार्य समिति (आईएनसी) (1998 – 1999)
  • अध्यक्ष, गृह मंत्रालय पर विभागों से संबंधित, संसदीय स्थायी समिति, पूर्व अध्‍यक्ष, पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति, पूर्व सदस्य, केंद्रीय चुनाव समिति, एआईसीसी (जून 1998 – मई 2004)
  • 14वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित (13 मई 2004)
  • केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री, रक्षा (23 मई 2004 - 24 अक्‍तूबर 2006)
  • सदन के नेता, लोकसभा (25 मई 2004)
  • केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, विदेश (25 अक्‍तूबर 2006-23 मई 2009)
  • वित्त मंत्रालय (अतिरिक्त प्रभार) (24 Jan 2009 - 23 मई 2009)
  • 15वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित (दूसरी अवधि); सदन के पूर्व नेता, लोकसभा (20 मई 2009)
  • पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, वित्त (23 मई 2009 - 26 जून 2012)
प्रकाशित पुस्‍त्कें :
  • मध्‍यावधि निर्वाचन, 1969;
  • बियॉन्‍ड सर्वाइवल: इमर्जिंग डायमेंशन्‍स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, 1984;
  • ऑफ द ट्रैक, 1987;
  • सागा ऑफ स्‍ट्रगल एंड सैक्रीफाइस, 1992; और
  • चैलेंजेस बिफोर द नेशन (भारतीय राष्‍ट्रीय कॉन्‍ग्रेस पर), 1992
पुरस्‍कार : पदम विभूषण, 2007
प्रणब मुखर्जी: राष्ट्रपति पद तक का सफर
प्रणब मुखर्जी
इससे पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुके हैं.
भारत के 13वें राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने जा रहे प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक माना जाता रहा है.
कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुके 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी राजनीति में चार दशक से अधिक समय बिता चुके हैं.
वे जुलाई 1969 में पहली बार राज्य सभा में चुनकर आए. तबसे वे कई बार राज्य सभा के लिए चुने गए हैं.
फरवरी 1973 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद मुखर्जी ने पिछले चालीस साल में कांग्रेस की या उसके नेतृत्व वाली सभी सरकारों में मंत्री पद संभाला है.
वर्ष 1996 से लेकर 2004 तक केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार रही लेकिन 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद से ही प्रणब मुखर्जी केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक के तौर पर काम करते रहे हैं.
वो सरकार की कई समितियों की अध्यक्षता करने के अलावा कांग्रेस पार्टी में भी एक अहम भूमिका निभाते हैं.

कांग्रेस से अलग

लेकिन इस कांग्रेसी दिग्गज ने 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद पार्टी को छोड़ भी दिया था.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था.
इससे नाराज प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम के अपने दल का गठन किया था.
लेकिन पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेसी मुख्यधारा में शामिल कर लिया था.

पारिवारिक पृष्ठभूमि



केंद्रीय मंत्रिमंडल में

फरवरी 1973 से जनवरी 1974 तक केंद्र में उप मंत्री
जनवरी 1974 से अक्तूबर 1974 तक उप मंत्री
अक्तूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वित्त राज्य मंत्री
दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक राजस्व और बैंकिंग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वाणिज्य मंत्री
जनवरी 1982 से दिसबंर 1984 तक केंद्रीय वित्त मंत्री
जनवरी 1993 से फरवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री
फरवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री
मई 2004 से अक्तूबर 2006 तक रक्षा मंत्री
अक्तूबर 2006 से मई 2009 तक विदेश मंत्री
जनवरी 2009 से अब तक केंद्रीय वित्त मंत्री
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में हुआ था. उन्होंने इतिहास और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है.
उनके पिता, कामदा किंकर मुखर्जी, एक स्वतंत्रता सेनानी थे और वो 10 वर्ष से भी अधिक जेल में रहे. उन्होंने 1920 से लेकर सभी कांग्रेसी आंदोलनों में हिस्सा लिया.
वो अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952- 64) के सदस्य‍ व जिला कांग्रेस समिति, वीरभूम (पश्चिम बंगाल) के अध्यक्ष रहे.
प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभीजित मुखर्जी पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायक हैं.

संसद में

प्रणब मुखर्जी को पहली बार जुलाई 1969 में राज्य सभा के लिए चुना गया था.
उसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्य सभा के लिए चुने गए.
वे 1980 से 1985 तक राज्य में सदन के नेता भी रहे.
मुखर्जी ने मई 2004 में लोक सभा का चुनाव जीता और तब से उस सदन के नेता थे.
माना जाता है कि यूपीए सरकार में प्रणब मुखर्जी के पास सबसे ज़्यादा जिम्मेदारियाँ थीं और वे वित्तमंत्रालय संभालने के अलावा बहुत से मंत्रिमंडलीय समूह का नेतृत्व कर रहे थे.

प्रणब मुखर्जी के लिए 'लकी' 13 नंबर


अगर प्रणब मुखर्जी के जीवन पर नज़र डालें, तो पाएंगे कि उनके लिए 13 अंक काफ़ी हद तक शुभ साबित हुआ है.
बहुत से लोग 13 नंबर को अशुभ मानते हैं. वे मानते हैं कि ये अंक दुर्भाग्य का प्रतीक है और वे इससे डरते हैं.
लेकिन भारत के नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उन लोगों में शामिल नहीं हैं.
भारतीय मीडिया उनके नामांकन के समय से कह रहा है कि राष्ट्रपति भवन के नए निवासी के लिए 13 अंक लंबे समय से 'शुभ' है.
हाल ही में इंडियन एक्प्रेस अख़बार को दिए एक इंटरव्यू में प्रणब मुखर्जी ने कहा था, "मैं अंधविश्वास में यकीन नहीं करता."
हालांकि एक तरह के विरोधाभास में उन्होंने ये भी कहा कि "13 एक शुभ अंक है. इसका मतलब पवित्र होता है. 13 अंक भगवान होता है."
तो इन चर्चाओं की आखिर वजह क्या है? किस तरह से 13 अंक प्रणब मुखर्जी के लिए शुभ है?

नंबर 13 का कमाल

प्रणब मुखर्जी की आधिकारिक जीवनियों और अख़बारों में छपे लेखों के मुताबिक उनकी शादी 13 जुलाई 1957 को हुई थी.
कैबिनट में शामिल होने के बाद, जुलाई 1996 से वे नई दिल्ली के तालकटोरा मार्ग स्थित 13 नंबर के बंगले में रह रहे हैं.
हालांकि अपने ओहदे के हिसाब से प्रणब मुखर्जी इससे बढ़िया और बेहतर बंगले के हक़दार हैं, लेकिन उन्होंने इसे छोड़ने से इनकार कर दिया.
संसद भवन में प्रणब मुखर्जी के कमरे का नंबर 13 है और कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम की घोषणा 13 जून को की गई थी.
राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने वाले प्रणब मुखर्जी 12वें व्यक्ति हैं. हालांकि वे देश के 13वें राष्ट्रपति हैं लेकिन राजेंद्र प्रसाद के दो बार पद पर रहने से वे राष्ट्रपति बनने वाले 12वें व्यक्ति हैं.


"अंकशास्त्र या टैरोट में 13 शुभ अंक नहीं माना जाता. ये एक आध्यात्मिक अंक नहीं है और सिर्फ़ कुछ ही लोगों के लिए ही शुभ हो सकता है."

संजय जुमानी, अंकशास्त्री
प्रणब मुखर्जी की पत्नी सुर्वा मुखर्जी ने हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार को बताया था, "हिंदू शास्त्रों में असल में 13 अंक का मतलब त्रयोदशी है जोकि हिंदू तिथि के अनुसार शुभ दिन माना जाता है. अगर आप उस दिन कुछ करते हैं तो उसके अच्छे और सकारात्मक नतीजे होते हैं."
सुर्वा मुखर्जी की इस बात से अमरीका का कोलगेट विश्वविद्यालय भी सहमत लगता है.
यूनिवर्सटी में फ्राइडे द थर्टीन्थ यानी जब भी शुक्रवार को 13 तारीख पड़ती है, उस दिन को कोलगेट दिवस के रूप में मनाया जाता है.
इसकी वजह ये है कि इस यूनिवर्सिटी को 13 लोगों ने शुरु किया था, हर व्यक्ति ने इसके लिए 13 डॉलर दिए थे और 13 प्रार्थनाएं की थीं.
वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपे लेख के मुताबिक भारतीय राजनीति और व्यापार में अंधविश्वास और धार्मिक संकेतों के आधार पर काम करना आम बात है.

शुभ या अशुभ?



बहुत लोग 13 अंक को अशुभ मानते हैं.
प्रचार अभियानों की शुरुआत शुभ दिन की जाती है, बड़े फैसलों की घोषणा सही मुहुर्त पर की जाती है और चुनावों से पहले नेता धार्मिक स्थलों में दान देते हैं और धार्मिक नेताओं से आशीर्वाद लेते हैं.
दुनिया की कई इमारतों की ही तरह मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में भी 13वीं मंज़िल नहीं है.
वर्ष 2003 में ब्रिटेन की हर्टफोर्डशायर यूनिवर्सिटी में रिचर्ड वाइसमैन के एक अध्ययन में पाया गया कि शोध में हिस्सा लेने वाले तीन-चौथाई से ज़्यादा लोग थोड़ा बहुत और आधे से कम लोग कुछ हद तक या फिर बहुत ज़्यादा अंधविश्वासी थे.
अध्ययन में ये भी सामने आया कि 25 प्रतिशत लोगों को 13 नंबर से डर लगता था.
मुंबई में रहने वाले जाने-माने अंकशास्त्री संजय जुमानी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया, "अंकशास्त्र या टैरोट में 13 शुभ अंक नहीं माना जाता. ये एक आध्यात्मिक अंक नहीं है और सिर्फ़ कुछ ही लोगों के लिए ही शुभ हो सकता है."
बहरहाल, सब लोगों के लिए न सही, लेकिन लगता तो यही है कि प्रणब मुखर्जी का 13 नंबर से संयोगवश ही सही बड़ा गहरा नाता है.

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